ख़्याल कुछ ऐसे भी...⊙ विवाह होना...एकमात्र संगम नहीं होता... प्रेम संगम तो तब है...जब #मैं_पुकारूँ और... तुम्हें आभास हो जाये...प्रेम को… एक नये #रिश्ते के...समर्पण में जो मिले वो सुख... आपसे मैं केवल #योगदान चाहता हूँ... #प्रेम_नहीं...! प्रेम स्वयं एक दिन अवश्य...इस योगदान को... एक गहरे रिश्ते में बाँध देगा...वो बँधन किसी… #समाज से न डरेगा...अपितु वो अपने आप में एक... स्वतंत्र पक्षी की भाँति होगा...जिसका गगन… हम दोनों के भीतर...छिपी हुई #इच्छाओं में व्यक्त होगा... दिखेगा... अनुभव होगा...! उस दिन समझ लेना...हमारा रिश्ता अमर हो जायेगा... ना तुम्हें फिर मुझसे...मिलने की आवश्यकता होगी... ना मुझे तुमसे मिलने की...कोई #अपेक्षा_रहेगी... तब मान लेना...हमने एक दूसरे के लिये... केवल जीवन ही नहीं...अपितु अपनी #सम्पूर्णता से... स्वयं को समर्पण कर दिया है…ठीक उसी प्रकार से… “जिस प्रकार से…घना #वृक्ष अपने पत्तों से... गर्मी के दिनों में…छाँव देकर आराम देता है... उसी प्रकार #शीत रीतु में...वही पेड़ की कुछ टहनियाँ और पत्ते... हमें जलकर अपने ताप से...उस बहती शीत लहर में… स्वस्थ और कुशल रखकर…हमें #सुख प्रदान करती हैं... सम्पूर्णता मात्र यहीं से तो होकर...#समर्पण की #पहचान बनाती है ॥ #विचार_कीजिये✍️♥️🧔🏻 ©पूर्वार्थ #Love #मैरिज