किस्सा चाय का। वो कहतें हैं ना, सब की जिंदगी में अपने दोस्तों के साथ कुछ किस्से या पल खास होते हैं। दरअसल वो किस्से अपने आप खास नहीं होते उन्हें खास बनाना पड़ता है। इन तीन चाय के कपों में वैसे तो कुछ खास नहीं है मगर आज इसके साथ एक छोटा-सा किस्सा जुड़ गया ।मैं ,विशाल और अमन , हम तीनों यूं ही घुमने के इरादे से 9:30 रात में निकलें और गम्हरिया पहुंचते ही चाय पीने की इच्छा हुई, हम वहां स्थित मोती होटल पहुंचे, वैसे आप लोगों को बता दूं कि मोती होटल की चाय लाजवाब होती है ।
वक्त 9:50 का हो रहा था ,और जशपुर जैसे छोटे शहर के लिए काफी देर हो चुकी थी । चाय के लिए पुछने पर पता चला कि अब चाय नहीं मिलेगी रात को साढे नौ के बाद वें चाय नहीं बेचते ।हम अपना-सा मुंह लेकर लोटने लगें तभी वहां के एक भाई ( जिसका नाम मुझे नहीं मालुम) ने सहानुभूति जताते हुए निराशा-जनक भाव से कहा "अगर दूध होता तो में चाय जरुर बना देता । अचानक ही मुझे याद आया कि मेरे स्कूटी की डिक्की में एक दूध का फैकेट रखा हुआ है,
फिर क्या था मैंने स्कूटी की चाभी विशाल को देते हुए कहा-
जा भाई दूध निकाल ला आज तो चाय पिकर ही जाएंगे।
दुकानदार भाई मेरी ओर देखने लगा ,तभी विशाल दूध का पैकेट उसके हाथ में थमाते हूए बोला- लो भाई अब तीन कप चाय बना दो, होटल वालों के चेहरे पर एक आश्चर्यजनक मुस्कान थी ,और वो भाई जो शायद कुछ ही देर चाय बनाने वाले बर्तन को धोकर सारा सामान अंदर रख चुका था , सारी व्यवस्था करने लगा , गैस-चुल्हा लेकर आया , पुनः बर्तन गंदे करके हमारे लिए चाय बनाकर लाया।
ना जाने आज क्यूँ चाय पीते हुए ऐसा लगा कि चाय का स्वाद आज कुछ खास ही लग रहा है, हमनें आपस में इसकी चर्चा भी की। इस दौरान हम तीनों हमारे एक और परम् मित्र और साथी राहुल से फोन पर बातें कर रहें थे और उसे चाय के नाम पर चिढा रहें थें। बेचारा किसी कारण भिलाई में अकेला है और हम लोग जशपुर आ गये हैं
खैर चाय खतम हुई हमने पैसे दिए, बचे हुए दूध का पैकेट उठाया , धन्यवाद किया और अपने घर को हो लिए। साथ थी मुंह में चाय की मिठास, कुछ यादें , दोस्तों के साथ बीतें कुछ मस्ती भरें पल और एक सा किस्सा ।