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ख्वाहिशों को हाथों में लिए हुए हम भी खड़े थे कतार म

ख्वाहिशों को हाथों में लिए हुए
हम भी खड़े थे कतार में
कमबख्त जरूरतों का कर्ज इतना था
के हम खुद ही बिक गए बाजार में

©Rashi
  kwahishe 
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