दर्द सहकर "सिसकती" रही, आँख से "अश्रु" बहाती रही ज़ख़्म देख आसमां रोक ना सका, आँख "नीर" बहाती रही ना मौसम सावन का ना भादों का, बे-मौसम बरसती रही अपने अनगिनत ज़ख़्मों पर वो 'मरहम' को "तरसती" रही वक़्त और हालत से मजबूर, दोनों की "साँसे" मचलती रही एहसास दिल को हुआ, जिदंगी जैसे पल-पल सिमटती रही किसान गरीबी को देख बेबस, आहें उसकी 'सिसकती' रही जिस्म को जलाया अपने उसने "रूह" उसकी "तड़पती" रही "इज्ज़त" का सौदा हुआ, नोची हुई, लहू से वो "भीगती" रही "प्रकृति" अपनी बेटी के लिए हरपल में आँसू "बहाती" रही #rztask38 #restzone #rzलेखकसमूह #barsaat #बेमौसमबरसात #yqdidi #अल्फाज_ए_कृष्णा दर्द सहकर "सिसकती" रही, आँख से "अश्रु" बहाती रही ज़ख़्म देख आसमां रोक ना सका, आँख "नीर" बहाती रही ना मौसम सावन का ना भादों का, बे-मौसम बरसती रही अपने अनगिनत ज़ख़्मों पर वो 'मरहम' को "तरसती" रही