।।श्री हरिः।।
41 - बताऊँ?
मैया अपने लाल के "बताऊं" से घबड़ाती है। वह जानती है कि यह चपल "बताऊँ" कहकर पता नहीं क्या-क्या बललाने लगेगा और फिर स्नान कलेऊ सब भूल जाएगा।
'बताऊं मैया!' कन्हाई के कहते ही मैया हंसकर कह देती है - 'अभी तू अपना बतलाना रहने दे। पहिले हाथ-मुख धो और कुछ खा। दिन भर तो वनमें घूमता रहा है, तुझे भूख लगी होगी।'
'बताऊँ मैया, यह तोक कैसे फुदकता है।' कृष्ण को प्रतिदिन ही कुछ-न-कुछ बतलाना रहता है। वन से लौटते ही मैया के कण्ठ से जा लिपटता है और फिर कुछ बतलाना चाहता है। बतलाने की सैंकडों बातें रहती हैं श्याम के समीप - तोक कैसे फुदकता है, दाऊ दादा कैसे आसन लगाकर बैठता है, भद्र कैसे सबको पुकारता है, अर्जुन कैसे वृषभ के पीछे दौडता है, मोटे कपि ने कैसे सुबल को दांत दिखाया अथवा दो वृषभ कैसे सिर सटाकर लड़ने का ढोंग कर रहे थे।