औकात। कुछ अच्छा लिखने चली थी मेरी कलम। बस तुम पर आकर अटक गई। कुछ सुंदर खोजने चली थी मेरी नज़र। बस तुम पर आकर अटक गई। कुछ मधुर श्रवण चाहते थे मेरे कर्ण। बस तुम पर आकर अटक गए। विश्व भ्रमण चाहते थे मेरे कदम। बस तुम पर आकर अटक गए। कलम ने अपना खूब साथ निभाया। नज़रों ने भी बस तुमको ही तराशा। कर्ण तो बस तुम्हारा नाम सुनते ही रह गए। कदमों की क्या कहे। अभी अभी आपकी आत्मा भ्रमण कर के लौटे हैं। बस एक मुख ने ही नमक हरमी की। बहुत कुछ चाह कर भी कुछ कह ना सकी। क्यों?? क्योंकि बात औकात पर आकर अटक गई।। औकात। कुछ अच्छा लिखने चली थी मेरी कलम। बस तुम पर आकर अटक गई। कुछ सुंदर खोजने चली थी मेरी नज़र। बस तुम पर आकर अटक गई। कुछ मधुर श्रवण चाहते थे मेरे कर्ण। बस तुम पर आकर अटक गए। विश्व भ्रमण चाहते थे मेरे कदम। बस तुम पर आकर अटक गए। कलम ने अपना खूब साथ निभाया। नज़रों ने भी बस तुमको ही तराशा। कर्ण तो बस तुम्हारा नाम सुनते ही रह गए। कदमों की क्या कहे। अभी अभी आपकी आत्मा भ्रमण कर के लौटे हैं। बस एक मुख ने ही नमक हरमी की। बहुत कुछ चाह कर भी कुछ कह ना सकी। क्यों?? क्योंकि बात औकात पर आकर अटक गई।।