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बहती नदी के किनारे की गीली माटी से बनायी गुरु द्र

बहती नदी के किनारे की गीली माटी से 
बनायी गुरु द्रोण की मूर्त्त थी
मस्तक झुका दिया सम्मान में
उठाया धनुर्दण्ड खींची प्रत्यंचा थी
कर दी बाणों की जो वर्षा थी

कुछ महीनों बाद 
निष्कंटक वन में एक सुबह
लौटे अपने शिष्यों संग गुरू द्रोण थे

राह भटकता पहुँचा एक श्वान था
करता शोर अभ्यास में जो बाधा था
बना दिया बाणों के तीव्र गति से
श्वान के मुख पर दुर्ग अभेद्य
जरा सी भी ना आयी उसको खरोंच थी
ऐसा ही तो उसका रणकौशल था अभी बाकी है.......
एकलव्य
राजा का बेटा
पिता की राज्य में 
बड़ी प्रतिष्ठा थी 
बालपन से ही 
अस्त्र-शस्त्र विद्या 
में उसकी निपुणता थी
बहती नदी के किनारे की गीली माटी से 
बनायी गुरु द्रोण की मूर्त्त थी
मस्तक झुका दिया सम्मान में
उठाया धनुर्दण्ड खींची प्रत्यंचा थी
कर दी बाणों की जो वर्षा थी

कुछ महीनों बाद 
निष्कंटक वन में एक सुबह
लौटे अपने शिष्यों संग गुरू द्रोण थे

राह भटकता पहुँचा एक श्वान था
करता शोर अभ्यास में जो बाधा था
बना दिया बाणों के तीव्र गति से
श्वान के मुख पर दुर्ग अभेद्य
जरा सी भी ना आयी उसको खरोंच थी
ऐसा ही तो उसका रणकौशल था अभी बाकी है.......
एकलव्य
राजा का बेटा
पिता की राज्य में 
बड़ी प्रतिष्ठा थी 
बालपन से ही 
अस्त्र-शस्त्र विद्या 
में उसकी निपुणता थी