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बात आज समानता के अधिकारों की होती है कोई सुनता नही

बात आज समानता के अधिकारों की होती है
कोई सुनता नहीं जिन्हे उन चितकारों की होती है
डंके की चोट पर सबका कहना बेटा बेटी एक सामान
दबी जुबान कहती सबकी बेटा ही कुल की पहचान
एक अजीब से द्वन्द में पिसती एक नन्ही सी जान
कब तक साबित करुँ खुदको कि मैं भी बन सकती हूँ सम्मान
ज़ब सोच बदल चुकी है धारा संकीर्ण विचारों की सूखी है
तो फिर क्यों आज भी भूर्ण हत्या जारी है
कोख में बेटियां कहती आज मेरी तो कल तेरी बारी है
माना कि प्रकृति के संतुलन हेतु दोनों जरुरी हैं 
तो फिर क्यों एक मूल्यवान और दूसरा मजबूरी है

ये कुछ अनसुनी बातें बेटी भूर्ण की गर्भ से
जिसके आने का सम्बन्ध नहीं किसी पर्व से

©Sarika Joshi Nautiyal
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