सावन व्यर्थ है तेरा जो तुमने पतझड़ नहीं देखा। जिसे स्वार्थ की चादर ने अपने में समेटा है वो जो ख़ामोश है चुप है जिसे न सुध है कोई जो आँखे मूँद बैठा हो उसे क्या सत्य क्या मिथ्या। ये सावन व्यर्थ है तेरा जो तुमने पतझड़ नहीं देखा। लिखा है क्या लकीरों में हो तुम देखा है क्या कभी यूँही व्यर्थ शिलाओं में पड़ी रेखा घिसो खुद को वो घिस देगा तुम्हारे हाथ भी रेखा। की सावन व्यर्थ है तेरा जो तुमने पतझड़ नहीं देखा पड़े हो किन विचारों में विचारों की भी सुध तो लो ये पतझड़ बीत जाएंगे बरसेगी ये फिर मेधा की सावन व्यर्थ है तेरा जो तुमने पतझड़ नहीं देखा। ~ निवेदिता #InspireThroughWriting #sawan #Hindi #hindi_poetry #patjhar