तेरे सौरभ से महका मेरे मन का नीरव वन बोराई सी पवन संदली भ्रमर कर रहे गुंजन नव प्रभात नव पल्लव नव गीत निशा नव, चन्द्र प्रभा भी लगे नवीन सी तारो से आछादित गगन। ये लताएँ, वन सघन सब तेरे आगम मे मगन आल्हादित पृकृति,हर कृति चहुँ ओर। मेरी प्रीत की तरुणाई मे, तुम अरुणिमा सी छाई। तुम मेरे जीवन का गीत अमर ओ मेरे मनमीत मनीषपाल सिंह (मानव) । मनमीत#