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तिल तिल मरते उन्मादों में, कभी भीड़ कभी वीरानों में

तिल तिल मरते उन्मादों में,
कभी भीड़ कभी वीरानों में,
हाथ धरे,पग समेट लिए हों,
पर्वत,वन या सुनसानों में,
गिरता रक्त अलाप रहा है,
छूटता प्राण प्रलाप रहा है,
शिथिल पड़े शरीर के ऊपर,
उड़ता गिद्ध ठठकार करे,
नोचें,खाएं अपने ही मद में,
कौन उनका संहार करे?
कब जागे वो आग हृदय में,
कौन रोके यह रक्तप्रवाह,
कौन बताए इस समर शेष में,
कहाँ रावण है,राम कहाँ?
            -प्रियजीत✍️ कहाँ रावण है,राम कहाँ...
तिल तिल मरते उन्मादों में,
कभी भीड़ कभी वीरानों में,
हाथ धरे,पग समेट लिए हों,
पर्वत,वन या सुनसानों में,
गिरता रक्त अलाप रहा है,
छूटता प्राण प्रलाप रहा है,
शिथिल पड़े शरीर के ऊपर,
उड़ता गिद्ध ठठकार करे,
नोचें,खाएं अपने ही मद में,
कौन उनका संहार करे?
कब जागे वो आग हृदय में,
कौन रोके यह रक्तप्रवाह,
कौन बताए इस समर शेष में,
कहाँ रावण है,राम कहाँ?
            -प्रियजीत✍️ कहाँ रावण है,राम कहाँ...