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हक की बातों से है बेज़ार, तू मुसलमान कैसा, है सरे आ

हक की बातों से है बेज़ार, तू मुसलमान कैसा,
है सरे आम गुनाहगार, तू मुसलमान कैसा...
भूल बैठा है के इसलाम का मकसद क्या था, बना फिरता है मुसलमान, तू मुसलमान कैसा...
कभी मस्जिद में नज़र आया नहीँ वक्ते नमाज़,
हज में जाने को है तय्यार, तू मुसलमान कैसा...
शौक से जाती हैं बेपर्दा तेरे होते हुए, तेरी बेहने सरे बाज़ार, तू मुसलमान कैसा...
भाई पे भाई का क्या फ़र्ज़ है ये भूल गया,
घर में कर रक्खी है दीवार, तू मुसलमान कैसा...
रिश्तेदारों से कभी करता नहीँ हुस्ने सुलूक, दीन का करता है प्रचार, तू मुसलमान कैसा...
हक में मोमिन के कभी तूने न आमीन कहा,
है दुआओ का तलबगार, तू मुसलमान कैसा...
तुझको माँ बाप की खिदमत की कोई फिक्र नहीँ, अपने बच्चों से करे प्यार, तू मुसलमान कैसा...
भूक से मर गया हमसाया तेरे होते हुए,
बोल बेरहम ज़मींदार, तू मुसलमान कैसा...
तुझसे डरते हैं तेरे सारे कबीले वाले, तेरा गर ऐसा है किरदार, तू मुसलमान कैसा...
बात हक की हो तो दामन को बचा लेता है,
झूठ का तू है तरफ़दार, तू मुसलमान कैसा...
दिल में है बुग्जो हसद और हवस आँखों में,
ये अगर तेरा है मेयार, तू मुसलमान कैसा. दीन कहता है के गैरों को भी अपना करलो,
तेरी अपनो से है तकरार, तू मुसलमान कैसा...
झाँक कर देख गरेबान में अपने "हम्माद",
होगा अहसास कई बार, तू मुसलमान कैसा ?

© sirf ek AARZU #MUSALMAAN
हक की बातों से है बेज़ार, तू मुसलमान कैसा,
है सरे आम गुनाहगार, तू मुसलमान कैसा...
भूल बैठा है के इसलाम का मकसद क्या था, बना फिरता है मुसलमान, तू मुसलमान कैसा...
कभी मस्जिद में नज़र आया नहीँ वक्ते नमाज़,
हज में जाने को है तय्यार, तू मुसलमान कैसा...
शौक से जाती हैं बेपर्दा तेरे होते हुए, तेरी बेहने सरे बाज़ार, तू मुसलमान कैसा...
भाई पे भाई का क्या फ़र्ज़ है ये भूल गया,
घर में कर रक्खी है दीवार, तू मुसलमान कैसा...
रिश्तेदारों से कभी करता नहीँ हुस्ने सुलूक, दीन का करता है प्रचार, तू मुसलमान कैसा...
हक में मोमिन के कभी तूने न आमीन कहा,
है दुआओ का तलबगार, तू मुसलमान कैसा...
तुझको माँ बाप की खिदमत की कोई फिक्र नहीँ, अपने बच्चों से करे प्यार, तू मुसलमान कैसा...
भूक से मर गया हमसाया तेरे होते हुए,
बोल बेरहम ज़मींदार, तू मुसलमान कैसा...
तुझसे डरते हैं तेरे सारे कबीले वाले, तेरा गर ऐसा है किरदार, तू मुसलमान कैसा...
बात हक की हो तो दामन को बचा लेता है,
झूठ का तू है तरफ़दार, तू मुसलमान कैसा...
दिल में है बुग्जो हसद और हवस आँखों में,
ये अगर तेरा है मेयार, तू मुसलमान कैसा. दीन कहता है के गैरों को भी अपना करलो,
तेरी अपनो से है तकरार, तू मुसलमान कैसा...
झाँक कर देख गरेबान में अपने "हम्माद",
होगा अहसास कई बार, तू मुसलमान कैसा ?

© sirf ek AARZU #MUSALMAAN