मन गागर में दुःख भरा है, कैसे चेहरा प्रफुल्लित दिखाऊंं? पहेलियों भरे इस जीवन को, मैं कैसे सरल तुम्हें बताऊं? ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ समस्याएं जब मेरी अनेक है, मैं कैसे सवाल तेरे सुलझाऊं? दुनिया बड़ी बेरहम है, मैं ज़ख्म मेरे फिर क्यों दिखाऊं? ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ सुखे हुए जब गुलाब पड़े हैं, मैं बसंत बहार कहां से लाऊं? श्वेत चादर में लिपटा हुआ हूं, फिर कैसे रंगों से मिलाप कराऊं? ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ स्वार्थ भरी इस दुनिया में, अब मन का मीत कहां से लाऊ? जब वेदनाओं से मन भरा है, मैं फिर कैसे प्रेम-गीत गुनगुनाऊं? ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ निरर्थक पड़े इस जीवन को अब कैसे जीकर मैं दिखाऊं? नयन-तालाब जब सुख गया है फिर कैसे रोकर मन बहलाऊं? ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ नफरतें भरी जब दिलों में कोई प्रीत-बीज कैसे उपजाऊं? रो पड़ी आज कलम भी मेरी मैंं कैसे व्यथा मौखिक सुनाऊं? ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~