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प्रेम की बहती नदी तुम मैं मुसाफिर देखकर ही जी बहल

प्रेम की बहती नदी तुम मैं मुसाफिर 
देखकर ही जी बहल जाता है मेरा, 
ज़िंदगी का प्रश्न पत्रक पूछता कुछ, किन्तु “तुम” ही एक हल आता है मेरा। 

सब दिशाओं में उगे सूरज को लेकर,
हमने मन में तो कभी लालच न पाला,
एक चंदा जैसा तुम को जब से देखा 
मन के हर कमरे में है शीतल उजाला। 
रिक्तियाँ सब दूर मुझसे हो चुकी, मन
इसलिए दीपक सा जल पाता है मेरा। 


मौन का चन्दन, खुशी की भाग्य रेखा, रोज तुम ही साथ मेरे पास लाती,
और फिर पागल किसी तितली की भाँति
मेरे तन पर फूल की आभा बनाती। 
अब गगन से मोह कैसा जबकि निश्चित
प्रेम मिट्टी में ही कल पाता है मेरा।  


शून्य के विस्तार का परिणाम जैसे विश्व है ये, सृष्टि सारी, और हम-तुम। 
इसका मतलब दो नहीं हम एक ही है
एक धागे से बंधे हम एक से तुम। 
फिर किसी दिन शून्य में हम एक होंगे 
इतना ही मन तो अमल पाता है मेरा।   
ज़िंदगी का प्रश्न पत्रक पूछता कुछ 
किन्तु “तुम” ही एक हल आता है मेरा.....

©सञ्जय किरार #ThePoetsLibrary #Sanjaykirar #poem #Poetry #kavita #Love #geet #Poet
प्रेम की बहती नदी तुम मैं मुसाफिर 
देखकर ही जी बहल जाता है मेरा, 
ज़िंदगी का प्रश्न पत्रक पूछता कुछ, किन्तु “तुम” ही एक हल आता है मेरा। 

सब दिशाओं में उगे सूरज को लेकर,
हमने मन में तो कभी लालच न पाला,
एक चंदा जैसा तुम को जब से देखा 
मन के हर कमरे में है शीतल उजाला। 
रिक्तियाँ सब दूर मुझसे हो चुकी, मन
इसलिए दीपक सा जल पाता है मेरा। 


मौन का चन्दन, खुशी की भाग्य रेखा, रोज तुम ही साथ मेरे पास लाती,
और फिर पागल किसी तितली की भाँति
मेरे तन पर फूल की आभा बनाती। 
अब गगन से मोह कैसा जबकि निश्चित
प्रेम मिट्टी में ही कल पाता है मेरा।  


शून्य के विस्तार का परिणाम जैसे विश्व है ये, सृष्टि सारी, और हम-तुम। 
इसका मतलब दो नहीं हम एक ही है
एक धागे से बंधे हम एक से तुम। 
फिर किसी दिन शून्य में हम एक होंगे 
इतना ही मन तो अमल पाता है मेरा।   
ज़िंदगी का प्रश्न पत्रक पूछता कुछ 
किन्तु “तुम” ही एक हल आता है मेरा.....

©सञ्जय किरार #ThePoetsLibrary #Sanjaykirar #poem #Poetry #kavita #Love #geet #Poet