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कितनों के चीर हरण करोगे तुम कितनों को टुकड़ों में

कितनों के चीर हरण करोगे तुम 
कितनों को टुकड़ों में काटोगे 
कितनों की लाज उतारोगे तुम 
कितनों को अब झुलसाओगे 
पर सुनलो ऐ नरभक्षी पुरूषों 
जब नारी अपने पे आएगी 
नर मुंडों के लहु से सनी होगी ये धरती 
शव फिर ना तुम गिन पाओगे 
है जिसे समझते तुम कोमल
वह भी आदिशक्ति की हीं रुप है 
घर में तुम्हारे बैठी मां बेटी 
दुर्गा की हीं स्वरूप है 
है जीवन तुमको गर प्यारी 
अपनी ग़लती स्वीकार करो
ठेकेदारों ऐ नारी तन के
बहुत हुआ अब बस भी करो 
कितना तुम मोल लगाओगे तन का
क्या शर्म तुम्हें जरा भी आती नहीं 
रहे सुरक्षित कन्या धरा पर
है तुम्हें क्या ये भाती नहीं

©Savita Suman
  #चीर_हरण