घर की भूली--बिसरी ज़रूरत, इक़दम कैसे बढ़ जाती है। जैसे; बेटे की -- पतंग की, डोर सदा क़म पड़ जाती है।। मेरा हौंसला ---- उसकी उमंगें, दोनों 'अनुपम' हैं भरपूर। फि़र भी मज़बूरी है कितनी ! कितना हमको तरसाती है।। : अनुपम त्रिपाठी #Mukt kanth amber !