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गुज़रे पल कितने पागल दिन थे मेरे, कितनी बेचैन निग

गुज़रे पल 

कितने पागल दिन थे मेरे, कितनी बेचैन निगाहें थी,
वो दिन थे मेरे ख़ामोशी के, हर बातों की मदहोशी के,

सब हमको दीवाना कहते थे, हम दीवानगी भी सहते थे,
वो दिन थे तेरे इंतज़ार के, बस पलकों से इज़हार के,

कितने पलो को गिनते थे, हाथों की लकीरों पर चलते थे,
वो दिन मेरे अपने सारे, जब होते थे आँखों से इशारे,

सब सपने सच्चे लगते थे, अपनों के चहरे अच्छे लगते थे,
वो दिन गुज़र ढल गए है, सब पल रातों में बदल गए है,
  
कितने पागल दिन थे मेरे, कितनी बेचैन निगाहें थी,
वो दिन थे मेरे ख़ामोशी के, हर बातों की मदहोशी के,

©Tanha Shayar hu Yash
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