पंखुड़ी (भाग 7) काव्य खिड़की पर जाकर पंखुड़ी को इशारा कर बुलाती है वी कागज की पुड़िया में नींद की गोलियां लपेट उसके कमरे में फेकती है.. पुड़िया पर लिखा था "भैया स्टेशन पर तुम्हारा इंतजार कर रहें है, स्टेशन के लिये ऑटो नुक्कड़ पर मिल जायेगा, ये नींद की गोलिया है इन्हे खाने मै मिला के इन्हे खिला देना और 11 बजे स्टेशन पर पहुंच जाना " पंखुड़ी सबके खाने मे नींद की दवा मिला सबको खाना खिला देतीं है, नींद की गोलियों के असर से सब बेहोशी जैसी नींद में सो जाते है,पंखुड़ी खिड़की पर ख़डी काव्य की और मुस्कुराते हुए स्टेशन की ओर भाग जाती है स्टेशन पर पहले से ही खड़ा वेद उसका इंतजार कर रहा होता है पंखुड़ी की नजरें स्टेशन पर ढूंढ़ती है वेद को, वेद भी पंखुड़ी को ही ढूंढ़ता है एक दूसरे को ढूँढ़ते हुए दोनों की नजरें मिलती है एक दूसरे से, पंखुड़ी कदम बढ़ा वेद के पास जाती है... आप काव्य के भैया है? वेद हाँ करके उसका हाथ थमने को उसकी ओर हाथ बढ़ता है पंखुड़ी को वेद अनजान होकर भी अनजान नहीं लगा,, वो अपना हाथ बढ़ा थामती है हाथ वेद का दो अजनबी एक दूसरे का हाथ थामे बैठ जाते है रेल में,खिड़की से शुरू वेद का प्यार रेल की सिटी बजने पर आगे बढ़ती रेल के साथ अब आगे बढ़ेगा पंखुड़ी न ही लाल चुनरी ओढ़ी थी न ही दुल्हन का लिबाज पर उसके चेहरे पर किसी दुल्हन से अधिक चमक थी आज... दोनों बंगलौर पहुंच समझते है एक दूसरे को, करते है समर्पित दोनों एक दूसरे को, एक दूसरे को छूने से पहले.. ज़ब कोइ पुरुष छू लेता है एक स्त्री की आत्मा को और स्त्री ज़ब बनती है पूरक पुरुष का तब होता है असली समर्पण ..... 2महीने बाद वेद अपनी और पंखुड़ी की शादी की फोटो काव्य के फोन पर भेजता है, वेद ने पंखुड़ी के जीवन में पँख लगा दिए है #पंखुड़ी