उसकी आँखों से छलक कर मेरी शामों के तराने उसकी ज़ुल्फो से छिटक कर मेरी नींदों के फ़साने उसकी भौवों पर बैठे मेरी आँखों के सपने उसकी खुशबू के परिंदे भी लगते हैं अपने उसकी पज़ेबों की छन छन से बिकती है जन्नत उसकी हथेली के सायों में रहती है मन्नत #RDV19