भूखे पेट संग तरसती आंखें, सड़कों के किनारों पर रोता बिलखता है बचपन, रोती बिलखती जिंदगी कभी लाचारी, कभी अपंगता में खो जाता है बचपन। चोरी,नशा और जुल्म के फेर में पड़कर, धुंए के बीच में फंसा है मासूम बचपन, दिन-रात अश्क बहाता,फिर भी मुस्कुराता,अश्कों के पीछे है ख़ामोश बचपन। समय सीमा : 21.01.2021 9:00 pm पंक्ति सीमा : 4 काव्य-ॲंजुरी में आपका स्वागत है। आइए, मिलकर कुछ नया लिखते हैं,