बिगड़ता रहा हूँ,सुधरता रहा हूँ। हाँ इतना पता है बदलता रहा हूँ। कभी खाई ठोकर,कभी मात खाई। खुदी से छिड़ी है,तो लड़ता रहा हूँ। कभी आये कांटे, कभी आये पत्थर। मंद हूँ पर सतत आगे चलता रहा हूँ। कभी सोचता हूँ मैं सीधा चला हूँ। सुना है कि गिरता,सम्भलता रहा हूँ। कभी ये लगा सब बराबर किया है। कभी सोचता हूँ ये कर क्या रहा हूँ। बिगड़ता रहा हूँ,सुधरता रहा हूँ। हाँ इतना पता है बदलता रहा हूँ। कभी खाई ठोकर,कभी मात खाई। खुदी से छिड़ी है,तो लड़ता रहा हूँ। कभी आये कांटे, कभी आये पत्थर। मंद हूँ पर सतत आगे चलता रहा हूँ।