*** कविता *** *** मैं और तुम *** "मैं और तुम चाहेंगे एक-दूजे को , हमारी मुलाकात कभी होगी नहीं , जिस्मो से रुह तक का सफर दिलचस्प होगा , मैं और तुम चाहेंगे एक-दूजे को , हमारी मुलाकात कभी होगी नहीं , दायरा है नजदिकियां भी है , बातें भी खामोशियों जाहिर है , यू चाहना एक-दूजे को दस्तुर होगा , हमारा मिलना ख़ुदा को कब मंजूर होगा , वेपनाह चाहत दिख जायेगा , हमारे जिस्मों की हाया खिल जायेंगे , जिस्मों से रुह तक का सफर दिलचस्प होगा , देखते ये सफ़र कैसे कब कहां तय करना , हमारे चाहतों ख्वाहिश क्या अंज़ाम देना है , यू तो हमसफ़र एक-दुजे के लिए , जाने कब- कैसे एक-दूजे को प्यार करना है , जिस्मों से रुह तक का सफ़र दिलचस्प होगा . " --- रबिन्द्र राम *** कविता *** *** मैं और तुम *** "मैं और तुम चाहेंगे एक-दूजे को , हमारी मुलाकात कभी होगी नहीं , जिस्मो से रुह तक का सफर दिलचस्प होगा , मैं और तुम चाहेंगे एक-दूजे को , हमारी मुलाकात कभी होगी नहीं ,