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बर्तन में जिसके कई रोज से खाना नहीं आया उसे मिली र

बर्तन में जिसके कई रोज से खाना नहीं आया
उसे मिली रोटी तो सलीके से खाना नहीं आया
               मेरी थाली से गिरी रोटी पर टूट पड़ा था जो
               मुझे, उसे खाने का तरीका सिखाना नहीं आया
सरकार बनाने को पार्टियों ने हाथ मिलाया
उन्हें भूख को रोटी से मिलाना नहीं आया
              जिसने नाले से निकाल कर रोटी खाई 
              ना खाने का उसे कोई बहाना नहीं आया
जिन रोटियों को थालियों में छोड़ दिया  बेशर्मी से
उन रोटियों को भी किसी की भूख मिटाना नहीं आया
              एक ही सब्जी दूसरे वक्त खाई नहीं जाती हमसे
              उसके हिस्से में तो अन्न का एक भी दाना नहीं आया
रोटी का ख्वाब देखता नींद में भूखा मगर
खाली पेट  नींद का भी बहाना नहीं आया
               रहने चला था कुछ दिन भूखा मैं भी 
               भूख से एक दिन भी बीताना नहीं आया
दबा दी थी आवाज, भूख से हाथ पसारने वाले की
एक पहर भूखा रहा तो मुझे भूख दबाना नहीं आया
              मुझे खाते देख जो दौड़ आया था ढाबे के भीतर
              आंखो में भूख देख कर मुझे उसे भगाना नहीं आया
जिसकी आंखो में ख्वाब नहीं रोटी का टुकड़ा था
उन आंखो से मुझे रोटी छुपाना नहीं आया
              उसके सामने अपनी थाली सरका दी मैंने
              जिसे पेट की लगी आग बुछाना नहीं आया
एक दिन सड़क किनारे मरा मिला मुझे वो
अकड़ दिखाने वालों को हौसला दिखाना नहीं आया
              कुछ खा खा के मर रहे, वो बिना खाए ही मर गया
              कभी पंजा,कभी कमल खिलाने वालों को रोटी खिलाना नहीं आया
#Poetic_Pandey रोटी
बर्तन में जिसके कई रोज से खाना नहीं आया
उसे मिली रोटी तो सलीके से खाना नहीं आया
               मेरी थाली से गिरी रोटी पर टूट पड़ा था जो
               मुझे, उसे खाने का तरीका सिखाना नहीं आया
सरकार बनाने को पार्टियों ने हाथ मिलाया
उन्हें भूख को रोटी से मिलाना नहीं आया
              जिसने नाले से निकाल कर रोटी खाई
बर्तन में जिसके कई रोज से खाना नहीं आया
उसे मिली रोटी तो सलीके से खाना नहीं आया
               मेरी थाली से गिरी रोटी पर टूट पड़ा था जो
               मुझे, उसे खाने का तरीका सिखाना नहीं आया
सरकार बनाने को पार्टियों ने हाथ मिलाया
उन्हें भूख को रोटी से मिलाना नहीं आया
              जिसने नाले से निकाल कर रोटी खाई 
              ना खाने का उसे कोई बहाना नहीं आया
जिन रोटियों को थालियों में छोड़ दिया  बेशर्मी से
उन रोटियों को भी किसी की भूख मिटाना नहीं आया
              एक ही सब्जी दूसरे वक्त खाई नहीं जाती हमसे
              उसके हिस्से में तो अन्न का एक भी दाना नहीं आया
रोटी का ख्वाब देखता नींद में भूखा मगर
खाली पेट  नींद का भी बहाना नहीं आया
               रहने चला था कुछ दिन भूखा मैं भी 
               भूख से एक दिन भी बीताना नहीं आया
दबा दी थी आवाज, भूख से हाथ पसारने वाले की
एक पहर भूखा रहा तो मुझे भूख दबाना नहीं आया
              मुझे खाते देख जो दौड़ आया था ढाबे के भीतर
              आंखो में भूख देख कर मुझे उसे भगाना नहीं आया
जिसकी आंखो में ख्वाब नहीं रोटी का टुकड़ा था
उन आंखो से मुझे रोटी छुपाना नहीं आया
              उसके सामने अपनी थाली सरका दी मैंने
              जिसे पेट की लगी आग बुछाना नहीं आया
एक दिन सड़क किनारे मरा मिला मुझे वो
अकड़ दिखाने वालों को हौसला दिखाना नहीं आया
              कुछ खा खा के मर रहे, वो बिना खाए ही मर गया
              कभी पंजा,कभी कमल खिलाने वालों को रोटी खिलाना नहीं आया
#Poetic_Pandey रोटी
बर्तन में जिसके कई रोज से खाना नहीं आया
उसे मिली रोटी तो सलीके से खाना नहीं आया
               मेरी थाली से गिरी रोटी पर टूट पड़ा था जो
               मुझे, उसे खाने का तरीका सिखाना नहीं आया
सरकार बनाने को पार्टियों ने हाथ मिलाया
उन्हें भूख को रोटी से मिलाना नहीं आया
              जिसने नाले से निकाल कर रोटी खाई