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किसी काम नहीं आता ये समाज, दबाता ही रहता है मज़लूम

 किसी काम नहीं आता ये समाज,
दबाता ही रहता है मज़लूमों की आवाज़..!

तोड़ रहे हैं निचोड़ कर ख़ुशियाँ,
चाहते हैं ख़ुद के सिर पर सदा ताज़..!

पीछे खींचते हैं आसमाँ तक,
जाने की ख़्वाहिश रखने वाले परवाज़..!

किसी के भी न थे ये कभी,
न ही कल और न ही आज..!

पीठ पीछे शोर मचाते हैं ये,
ख़त्म होता है जब इनका दूजों पर राज़..!

©SHIVA KANT
  #boat #samaaj