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दर्द उगते रहे मैं गुनगुनाता रहा चोट खाकर भी,मुस्कु

दर्द उगते रहे मैं गुनगुनाता रहा
चोट खाकर भी,मुस्कुराता रहा 

हादसों की कितनी सूरत लिए
वक्त आता रहा और'जाता रहा 

देवता मानने की, भूल हो गई
पत्थरों पर सिर, टकराता रहा 

बस्ती के अंधेरे से घबरा गया
रात भर उम्मीदें, जलाता रहा 

खुरच दी लकीरें हथेलियों से
नसीब इस तरह मिटाता रहा 

मुर्दा एहसास की वो कहानी
बेवज़ह सभीको सुनाता रहा 

तमाम उम्र गफ़लत में गुजरी
हकीकत की मार खाता रहा

©मुखौटा A HIDDEN FEELINGS #दर्द #उगते #रहे #मैं #गुनगुनाता रहा
चोट खाकर भी,मुस्कुराता रहा 

हादसों की कितनी सूरत लिए
वक्त आता रहा और'जाता रहा 

देवता मानने की, भूल हो गई
पत्थरों पर सिर, टकराता रहा
दर्द उगते रहे मैं गुनगुनाता रहा
चोट खाकर भी,मुस्कुराता रहा 

हादसों की कितनी सूरत लिए
वक्त आता रहा और'जाता रहा 

देवता मानने की, भूल हो गई
पत्थरों पर सिर, टकराता रहा 

बस्ती के अंधेरे से घबरा गया
रात भर उम्मीदें, जलाता रहा 

खुरच दी लकीरें हथेलियों से
नसीब इस तरह मिटाता रहा 

मुर्दा एहसास की वो कहानी
बेवज़ह सभीको सुनाता रहा 

तमाम उम्र गफ़लत में गुजरी
हकीकत की मार खाता रहा

©मुखौटा A HIDDEN FEELINGS #दर्द #उगते #रहे #मैं #गुनगुनाता रहा
चोट खाकर भी,मुस्कुराता रहा 

हादसों की कितनी सूरत लिए
वक्त आता रहा और'जाता रहा 

देवता मानने की, भूल हो गई
पत्थरों पर सिर, टकराता रहा