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पैसा, पैसा ही गुण है, हर दोष का मरहम है, पैसा इं

पैसा, पैसा ही गुण है, 
हर दोष का मरहम है, 
पैसा इंसान को अलग दिखाता है, 
जो मिटनी है वो पहचान दिलाता है, 
पैसों से अपने मिलते है,
बिकाऊ है मानवता, 
पर हथेली पर सिर्फ लकीरें है टेढ़ी मेढ़ी , 
केवल दो एक संघर्ष दूजी लानत, 
शायद कभी नोट भी होंगे, 
कुछ समय बाद फिर खींचेगा इनका गुरुत्व,अपनों को,परिवार को, रिश्तों को, रिश्तेदारों को, समाज को,

ओहो.............

कोई रोको हमे, 
मैं फिर से सपनों की किश्ती में सवार हो गया, 
संघर्ष,गति,पीड़ा, और गधा बनने को तैयार हो गया,
ये दौड़ भाग, झपटा झपटी ,मच मच, मारा मारी, 
ये नाम, मुकाम,सब जुखाम,तांगा तुलसी सब बेवकूफी, 
और मैं बेवकूफो का सरदार हो गया, 
जब से एक युवा बेरोजगार प्रेमी हो गया

बेरोजगार प्रेमी, 
एक रोग है, संक्रमण है स्वतंत्र फैल रही है, 
सब भाग रहे है दूर, मिल रही भीख, 
कुछ शब्दों की, कुछ लम्हों की, 
थोड़ी खुशी की पर आदत है गंभीरता की, 
गंभीरता बिलकुल शव की तरह, मुस्कान रहित, जबाव रहित, हंसी रहित, 
शिकायत शव नहीं करता, 
वो पड़ा रहता है निस्तेज, निष्क्रिय, 
अप्रभावित, गंभीर,निश्चल, अडिग, 
एक वस्तु की तरह, वस्तु परित्यक्त है, 
बिकाऊ है,अनाभास है, 
अंतिम मुकाम कबाड़ी है, 
कबाड़ी में हीरे नहीं जाते, 
वस्तु ही जाती है वो भी मन भरने के बाद, 
टूटने के बाद, हीरे तो प्राण है, 
दृष्टिप्रिय हैं,प्राथमिक है, 
और वस्तु गौण, ये गौणत्व विष है, 
जो विषाक्त कर रहा है समाज को, 
संसार को, दृष्टि को, शब्दों को, 
परिवार को, संबंधो को, दोस्ती को, 
इच्छा को, अमृत सी शिक्षा को, 
बदल रहा है कीचड़ से, 
डिग्री की ढाल भेद, 
गौणत्व का प्रहार हो गया, 
जब से एक युवा बेरोजगार प्रेमी हो गया
(समाज की दृष्टि में बेरोजगार प्रेमी = वस्तु = भिखारि =शव =संक्रमण =कीचड़)

©Dr Nirmal Meena #DARKNESSANDFIRE
पैसा, पैसा ही गुण है, 
हर दोष का मरहम है, 
पैसा इंसान को अलग दिखाता है, 
जो मिटनी है वो पहचान दिलाता है, 
पैसों से अपने मिलते है,
बिकाऊ है मानवता, 
पर हथेली पर सिर्फ लकीरें है टेढ़ी मेढ़ी , 
केवल दो एक संघर्ष दूजी लानत, 
शायद कभी नोट भी होंगे, 
कुछ समय बाद फिर खींचेगा इनका गुरुत्व,अपनों को,परिवार को, रिश्तों को, रिश्तेदारों को, समाज को,

ओहो.............

कोई रोको हमे, 
मैं फिर से सपनों की किश्ती में सवार हो गया, 
संघर्ष,गति,पीड़ा, और गधा बनने को तैयार हो गया,
ये दौड़ भाग, झपटा झपटी ,मच मच, मारा मारी, 
ये नाम, मुकाम,सब जुखाम,तांगा तुलसी सब बेवकूफी, 
और मैं बेवकूफो का सरदार हो गया, 
जब से एक युवा बेरोजगार प्रेमी हो गया

बेरोजगार प्रेमी, 
एक रोग है, संक्रमण है स्वतंत्र फैल रही है, 
सब भाग रहे है दूर, मिल रही भीख, 
कुछ शब्दों की, कुछ लम्हों की, 
थोड़ी खुशी की पर आदत है गंभीरता की, 
गंभीरता बिलकुल शव की तरह, मुस्कान रहित, जबाव रहित, हंसी रहित, 
शिकायत शव नहीं करता, 
वो पड़ा रहता है निस्तेज, निष्क्रिय, 
अप्रभावित, गंभीर,निश्चल, अडिग, 
एक वस्तु की तरह, वस्तु परित्यक्त है, 
बिकाऊ है,अनाभास है, 
अंतिम मुकाम कबाड़ी है, 
कबाड़ी में हीरे नहीं जाते, 
वस्तु ही जाती है वो भी मन भरने के बाद, 
टूटने के बाद, हीरे तो प्राण है, 
दृष्टिप्रिय हैं,प्राथमिक है, 
और वस्तु गौण, ये गौणत्व विष है, 
जो विषाक्त कर रहा है समाज को, 
संसार को, दृष्टि को, शब्दों को, 
परिवार को, संबंधो को, दोस्ती को, 
इच्छा को, अमृत सी शिक्षा को, 
बदल रहा है कीचड़ से, 
डिग्री की ढाल भेद, 
गौणत्व का प्रहार हो गया, 
जब से एक युवा बेरोजगार प्रेमी हो गया
(समाज की दृष्टि में बेरोजगार प्रेमी = वस्तु = भिखारि =शव =संक्रमण =कीचड़)

©Dr Nirmal Meena #DARKNESSANDFIRE