ख़्वाब तो देखता रहता हूँ मैं, मुश्किल ये है आँख खुलने पे भी ख़्वाबों के चकत्ते नहीं जाते आँख खुलती है तो कुछ देर महक रहती है पलकों के तले सूख जाते हैं तो कुछ रोज़ में गिर जाते हैं, बासी होकर ज़र्द - से रेज़े हैँ उड़ते है फिर आँखों में महीनों ! मेरी आँखों से तो दरिया भी गुज़रते हैं मगर दाग़ लग जायें तो धुलते नहीं ख़्वाबों के कभी ! #प्लूटो