उफ़क...!! ये बंदर !! मुझ अभागिन को जाने क्यों सताता है ? मुझ दुखियारी से उमर की मारी से क्या इसका नाता है ? कभी बिखेर देता है मेरी सब्जियां अरमानों की तरह, कभी समेट देता है बिखरी सब्जियां खुशियों की तरह, इसका समेटना-बिखेरना मुझे समझ नहीं आता है । उफ्फ...!! ये बंदर !! कभी छेड़ता है मुझे ज़िद करता है मुझसे एक पोते की तरह, कभी सम्भालता है सहलाता है मुझे एक बेटे की तरह, इसकी ज़िद, इसका अपनापन जाने क्यों मुझे भाता है ? उफ्फ...!! ये बंदर !! मेरी भावनाओं को ज़ुबान ने ठुकराया बेज़ुबान ने अपनाया, मेरे कांपते हाथों से लाठी ने ही हाथ झटका इसने हाथ अपना थमाया, इसका अपनापन ही मुझे गमों से बचाता है । उफ्फ...!! ये बंदर !! अच्छा लगता है मुझे जब भी सताता है । उफ्फ...ये बन्दर !!!