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तेरी महफिल में ऐसे बैठा हूँ मैं, जैसे कोई कांच क

तेरी महफिल में ऐसे   बैठा हूँ मैं,
जैसे कोई कांच का टुकड़ा हूँ मैं.

प्यार  से  समेटना  तुम  मुझको,
देखो  मोहब्बत  से बिखरा हूँ मैं.

तुम्हारे दिल से सरका हूँ मैं ऐसे,
जैसे कोई फिसलता दुपट्टा हूँ मैं.

तुम जो मोहब्बत से देखते मुझे,
लगता  है कि  तेरा आईना हूँ मैं.

ख़ूबसूरत  अदांज  मे  पढ़ते हो,
महबूब  की ख़त  का पन्ना हूँ मैं. इसे महफिल में जब भी सुनाऊंगा गाकर सुनाऊंगा
तेरी महफिल में ऐसे   बैठा हूँ मैं,
जैसे कोई कांच का टुकड़ा हूँ मैं.

प्यार  से  समेटना  तुम  मुझको,
देखो  मोहब्बत  से बिखरा हूँ मैं.

तुम्हारे दिल से सरका हूँ मैं ऐसे,
जैसे कोई फिसलता दुपट्टा हूँ मैं.

तुम जो मोहब्बत से देखते मुझे,
लगता  है कि  तेरा आईना हूँ मैं.

ख़ूबसूरत  अदांज  मे  पढ़ते हो,
महबूब  की ख़त  का पन्ना हूँ मैं. इसे महफिल में जब भी सुनाऊंगा गाकर सुनाऊंगा
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writer abhay

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