।। ॐ ।। आ꣡ नो꣢ मित्रावरुणा घृ꣣तै꣡र्गव्यू꣢꣯तिमुक्षतम् । म꣢ध्वा꣣ र꣡जा꣢ꣳसि सुक्रतू ॥२२०॥ पद पाठ आ꣢ । नः꣣ । मित्रा । मि । त्रा । वरुणा । घृतैः꣢ । ग꣡व्यू꣢꣯तिम् । गो । यू꣣तिम् । उक्षतम् । म꣡ध्वा꣢꣯ । र꣡जाँ꣢꣯सि । सु꣣क्रतू । सु । क्रतूइ꣡ति꣢ ॥ इन्द्र परमात्मा और इन्द्र राजा के अधिष्ठातृत्व में चलनेवाले हे (मित्रावरुणौ) ब्राह्मण और क्षत्रियो ! तुम दोनों (नः) हमारी (गव्यूतिम्) राष्ट्रभूमि को (घृतैः) घृत आदि पदार्थों से (आ उक्षतम्) सींचो अर्थात् समृद्ध करो। हे (सुक्रतू) उत्तम ज्ञान और कर्म वालो ! तुम दोनों (मध्वा) विद्यामधु के साथ (रजांसि) क्षात्रतेजों को उत्पन्न करो ॥ Those who walk in the supremacy of Indra God and Indra King (Mitravarunau) are Brahmins and Kshatriyas! Both of you (nah) enrich our (gavutim) nation land with (ghritai), ghrit etc. (aa utthatam) ie. O (Sukratu) those who have excellent knowledge and actions! Produce (Rajansi) Kshatratej with both of you (Madhva) Vidyamadhu. ( सामवेद मंत्र २२० ) #सामवेद #वेद #इन्द्र #क्षत्रिय #ब्रह्मण