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जब जिने कि चाहत थी, तो दुश्मन लाखों थे । अब शौक

जब  जिने कि चाहत थी, 
तो दुश्मन लाखों थे ।

अब शौक मरने का है तो,
 कातिल कोई नजर नहीं आता।।

©Kumar.Satyajit
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