प्रिय Arvah, ये मेरी प्रोफाइल के निचले हिस्से में एक खंड है जो मुझे अक़्सर याद दिलाता है कि, "यादें साझा करें" तो सोचा कि इसे कब तक निराश करूँ। आज खुश हूँ, काफ़ी दिन बाद। ज़िंदगी कुछ ठीक ही चल रही है। कुछ दिन दो घंटे सोती हूँ तो कभी आठ। किताबों का एक ढेर हर दिन तुम्हारे लौट आने की आस लगाए रहता है, तभी मैं उन्हें तुम्हारे इरादों की ऊंचाइयों का अनुमान उन वादियों से लगाने को कहती हूँ, जहाँ तुम चली गई हो। इतना कुछ लिखना है, पर जैसे सब हाथों से फिसलता जा रहा है, वक़्त की तरह। वही वक़्त, जिसकी तुमने कभी परवाह नहीं की। कभी कभी मन करता है कि इस जद्दोजहद से दूर भागकर, बिना भौतिकवादी दुनिया की फ़िक्र किये तुम्हारे उन पहाड़ो का हिस्सा बन जाऊँ। कितना अजीब है न, परवाह में भी तो अरवाह है, फिर भी तुम "पर" लेकर उड़ गईं। Letters to Arvah : 4 Click on #LettersToArvah to read in continuation. #yqbaba #yqdidi