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जैसे कहते है न मन के हारे हार है मन के जीते जीत..

जैसे कहते है न मन के हारे हार है मन के जीते जीत..
बस उसने हार को स्वीकार ही नही किया..

कुछ रिपोर्ट्स देखने के बाद डॉक्टर को कहना पड़ा आप ज्यादा से ज्यादा छह महीने ही जीवित रह सकते है,

पर उसने ठान लिया था कि बीमारी का अस्तित्व पूरे शरीर से मिटा के रहना है,
शरीर में जितना भी बीमारी का प्रभाव था पर मन उसका इतना अडिग था कि उसे सिर्फ स्वस्थ जीवन ही दिख रहा था,

जितना व्यक्ति कई बार बीमारी से ग्रसित नही होता उससे कहीं ज्यादा नकारात्मकता से ग्रसित होता है जिससे बीमारी और बढ़ती जाती है,
इसीलिए उसने दो जिम्मेदारियां ली एक तो सही शारीरिक इलाज की और दूसरी भावनात्मक इलाज की..
ईश्वर को हमेशा उसने जीवन के लिए शुक्रिया देने में कभी कंजूसी नहीं दी,उसकी आशावादिता इतनी थी कि उसने पहले ही ईश्वर को धन्यवाद दिया था कि जो भी होगा आप ही बेहतरी के लिए करोगे, क्यूं मैं चिंता करू ,काम तो डॉक्टर की सलाह से इलाज करवाते रहना है...
कई कीमो उपचार और कई महीनो की तपस्या के बाद जिस डॉक्टर को कहना पड़ा था की कुछ ही जीवन शेष है,उसी डॉक्टर ने नई स्वस्थ जिंदगी की बधाई देकर एक आत्मविश्वास के चमत्कार को प्रोत्साहन दिया...
घर में उसके बचपन के दोस्त जश्न मनाने को इंतजार कर रहे थे,उसके आने पर सबने उसे गले लगाया,तभी एक दोस्त बोला यार बचपन में कहता था कि मैं इतना बड़ा फाइटर हूं हर चीज़ को हरा सकता हूं हम बहुत हस्ते थे और तुझे फट्टू झूठा कहते थे, आज यार तू हमारा रियल फाइटर है वॉरियर जिसपर सबको गर्व है..
उसकी आंखों में आसूं थे और सबकी आंखें भी धीरे धीरे नम हो गई,
ये खुशी के आंसू थे...

©Anupama Sharma
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