डर जाता ग़र कभी मैं अपनी तन्हाई से, शोर ना मचाता, चुप चाप बिखर जाता! मुझे सताती ग़र कभी दर्द की आहें बेवजह, जिंदा रहता हरहाल, चुप चाप बिखर जाता ! मायूस नज़ारों को देखकर रोता ग़र कभी, बिकता हर शाम, चुप चाप बिखर जाता! पर मैं बिखरा नहीं अब तक तेरे एक वादे के लिए जी रहा हूँ अब तक देखने को तेरे इरादे के लिए! #kumaarsthought #kumaarpoem #yapowrimo #kumaaryapowrimo #दर्दबहुतहै