"तुम ठहर गए होते तो ऐसा ना होता," - सुराख़ ----- बीमार पिता ने ऑफ़िस से देर से आए, बेटे को अपनी दवाईयाँ ख़त्म होने की बात बतायी और अभी दवाईयाँ लाने का हुक़्म दे डाला।एक बच्चे का बाप बना बेटा भड़क ही गया - " क्या आप भी ? अभी-अभी घर में आया हूँ, मैं नहीं जा सकता । कल ला दूंगा। जल्दी है तो आप खुद टहलते हुए जाकर नहीं ला सकते ? " पिता के प्रति इस तरह के अशोभनीय व्यवहार से आहत , पत्नी से रहा नहीं गया - " अपने बीमार-अशक्त पिता से इस तरह बात की जाती है? आपको उनसे क्षमा माँगनी चाहिए।" बेटे को अपनी गलती का अहसास हुआ या नहीं । मगर, पत्नी की फटकार सुनकर वह उसी समय दवाईयाँ लेने निकल गया। बेटे के शब्दाघात से चोटिल संवेदनशील बीमार पिता सकते में आ गए। उनकी, संस्कारों से युक्त परवरिश में कहाँ सुराख़ रह गया ? ज़हन में उनके केवल अब यही सवाल बार-बार उठ रहा था।