गुरू पर कविता। जीवन कहीं चट्टानों-सा ठहरा होता, ये नदियों-सा बहना शुरू न होता, अगर जीवन में गुरू न होता- 2।। आँख रहते हम अंधे होते, दिन के उजालों में भी देख न पाते। जनवरों की तरह जंगलो में कहीं भटक रहे होते, बंदरों की तरह पेड़ों पर कहीं लटक रहे होते। आदिमानव से मानव न बनता, जीवन में कुछ करने की आरज़ू न होता। अगर जीवन में गुरू न होता। जिसने मेरे कमियों को दूर कर मुझमें खुबियां भर दिया। जिसने मुझको ज्ञान देकर मेरे जीवन को सुन्दर किया। जिसने सत्य-असत्य में भेद बताया,जीवन जीना मुझे सीखाया। जिसके बिना मैं फूल न बनता औरमुझमें ज्ञान की खुशबू न होता। अगर जीवन में गुरू न होता -2। हर मुश्किल को आसान बनाया, सारथी बनकर साथ निभाया। शिक्षक जैसा शुभचिंतक कोई और नहीं जमाने में, जिसने सारी शक्ति लगा दी,मुझे मंजिल तक पहुँचाने में। कहीं अंधेरों में घिरा रहता उजालों से रूबरू न होता। अगर जीवन में गुरू न होता-2।। guru par kavita