की उस सूरज कि पहली किरण सा सब कुछ रोशन कर जाने की... खुद की दुनिया में मस्त मगन होजाने की बारिश की पहली बूंदों की सी राहत दे जाने की बगिया में झूमते फूलों सा खिल जाने की या पंछी बन चहचहाने की... ...... बस इतनी सी ही तो ख्वाहिशें हैं मेरी की नदिया बन खुद की राहें खुद ही बनाने की उस ऊंचे पर्वत सा आसमां छू आने की फिर बच्चा बन के बेफिक्री में खिलखिलाने की और कभी कभी नादां हो अपनी इक छोटी सी दुनिया बसा जाने की .......बस इतनी सी ही तो ख्वाहिशें हैं मेरी की तितली बन खुद में रंगों को भर लाने की भंवरा बन के कलियां कलियां चुम आने की सूनी सुनसान राहों पर अकेली सड़कों सा पीछे जाने की यूं पंख फेला इस खुले गगनं में उड़ जाने की ....बस इतनी सी ही तो ख्वाहिशें हैं मेरी....बस इतनी सी ही तो ख्वाहिशें हैं मेरी की उस सूरज कि पहली किरण सा सब कुछ रोशन कर जाने की... खुद की दुनिया में मस्त मगन होजाने की बारिश की पहली बूंदों की सी राहत दे जाने की बगिया में झूमते फूलों सा खिल जाने की या पंछी बन चहचहाने की... ...... बस इतनी सी ही तो ख्वाहिशें हैं मेरी की नदिया बन खुद की राहें खुद ही बनाने की उस ऊंचे पर्वत सा आसमां छू आने की