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उन्नति का पंचम सोपान है निष्काम कर्म प्रभाव! निष्

उन्नति का पंचम सोपान है
 निष्काम कर्म प्रभाव! निष्काम कर्म प्रभाव के बिना कोई भी व्यक्ति ईमानदारी से काम नहीं कर सकता। कभी उसे सफलता असफलता आन्दोलित करेगी, कभी निन्दा रुष्ट और प्रशंसा प्रसन्न करेगी। महान पथ पर जिस राग द्वेष से रहित होना आवश्यक है, बिना निष्काम कर्म प्रभाव तभी प्राप्त हो सकता है, जब मनुष्य अपने प्रत्येक कर्तव्य को परम प्रभु का आदेश समझकर उसकी शक्ति से ही, उसके लिये ही करता हुआ अनुभव करे! जो अपने प्रत्येक कर्म को परमात्मा का ही काम समझकर करेगा वह उसे पूर्ण दक्षता, पूर्ण मनोयोग तथा पूर्ण श्रद्धा से करेगा। जिसके फल स्वरूप उसे उस सर्व शक्तिमान से सामर्थ्य एवं शक्ति प्राप्त होती रहेगी। जिसने अपनी सीमित शक्ति को ईश्वर की परम शक्ति में तिरोधान कर दिया है वह उन्नति के किस शिखर पर पहुँच सकता है यह बतलाना कठिन है। कठिन
उन्नति का पंचम सोपान है
 निष्काम कर्म प्रभाव! निष्काम कर्म प्रभाव के बिना कोई भी व्यक्ति ईमानदारी से काम नहीं कर सकता। कभी उसे सफलता असफलता आन्दोलित करेगी, कभी निन्दा रुष्ट और प्रशंसा प्रसन्न करेगी। महान पथ पर जिस राग द्वेष से रहित होना आवश्यक है, बिना निष्काम कर्म प्रभाव तभी प्राप्त हो सकता है, जब मनुष्य अपने प्रत्येक कर्तव्य को परम प्रभु का आदेश समझकर उसकी शक्ति से ही, उसके लिये ही करता हुआ अनुभव करे! जो अपने प्रत्येक कर्म को परमात्मा का ही काम समझकर करेगा वह उसे पूर्ण दक्षता, पूर्ण मनोयोग तथा पूर्ण श्रद्धा से करेगा। जिसके फल स्वरूप उसे उस सर्व शक्तिमान से सामर्थ्य एवं शक्ति प्राप्त होती रहेगी। जिसने अपनी सीमित शक्ति को ईश्वर की परम शक्ति में तिरोधान कर दिया है वह उन्नति के किस शिखर पर पहुँच सकता है यह बतलाना कठिन है। कठिन
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