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बूढ़ी कविता... थोड़ा लिख कर फिर डब्बे में बंद कर

बूढ़ी कविता... थोड़ा लिख कर
फिर डब्बे में बंद कर 
किसी कोठरी में 
रख दी जाती है कविता 
जैसे ब्याह में पहनी हुई साड़ी।
उसे बंधन पसंद नहीं
 वो अकुलाती है 
वो तो स्वतंत्रता चाहती है
बूढ़ी कविता... थोड़ा लिख कर
फिर डब्बे में बंद कर 
किसी कोठरी में 
रख दी जाती है कविता 
जैसे ब्याह में पहनी हुई साड़ी।
उसे बंधन पसंद नहीं
 वो अकुलाती है 
वो तो स्वतंत्रता चाहती है