अनायस ही बहा रहे हो, पौरूष का प्रखर ज्वार। होकर उन्माद के गिरफ्त में, उद्दीप्त न कर हुताशन का अंगार। समय रहते धारण कर, थोड़ा संस्कार-सृजन का श्रृंगार। ~आशुतोष यादव indira