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जब बिखर चुका हो अंतर्मन नित जीवन के सौ क्लेशों मे

जब बिखर चुका हो अंतर्मन 
नित जीवन के सौ क्लेशों में।
जब लड़ने को उम्मीदें भी 
मिलती हों बस अवशेषों में।

जब चाहत ना हो जीवन में 
उठकर फिर कोई काम करें।
जो बीत गया, भूले उसको
फिर से कुछ अपना नाम करें।

जब आत्मबल, आत्मसम्मान की
हर दिन रुसवाई होती है।
तब इंसा हर दिन मरता है,
हर रोज़ तबाही होती है।

जब हो विलुप्त आशाएं सब 
उद्यम से मन उकता जाए।
जब छोड़ दिया हो अपने को
मन जब काबू में ना आए।

जब पतन बुध्दि पर छाया हो
मन की दूर्बलताई होती है।
जब मनुज स्वयं को खो देवे
फिर आत्म तबाही होती है।

©Jupiter and it's moon....(प्रतिमा तिवारी) तबाही क्या होती है?
जब बिखर चुका हो अंतर्मन 
नित जीवन के सौ क्लेशों में।
जब लड़ने को उम्मीदें भी 
मिलती हों बस अवशेषों में।

जब चाहत ना हो जीवन में 
उठकर फिर कोई काम करें।
जो बीत गया, भूले उसको
फिर से कुछ अपना नाम करें।

जब आत्मबल, आत्मसम्मान की
हर दिन रुसवाई होती है।
तब इंसा हर दिन मरता है,
हर रोज़ तबाही होती है।

जब हो विलुप्त आशाएं सब 
उद्यम से मन उकता जाए।
जब छोड़ दिया हो अपने को
मन जब काबू में ना आए।

जब पतन बुध्दि पर छाया हो
मन की दूर्बलताई होती है।
जब मनुज स्वयं को खो देवे
फिर आत्म तबाही होती है।

©Jupiter and it's moon....(प्रतिमा तिवारी) तबाही क्या होती है?