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#OpenPoetry "सुनो! क्या वो ख़त मिला तुमको? जो तेरे

#OpenPoetry "सुनो! क्या वो ख़त मिला तुमको?
जो तेरे सिरहाने तकिये के नीचे छोड़ आया था
सरहद पुकार रही थी मुझको उस रोज़
बिन कुछ कहे तुझसे दूर चला आया था
बहुत जरूरत थी उस वक़्त, माँ को मेरी
अपना वतन साथियों के हवाले छोड़ आया था
क़ातिलों के हाथ छोड़ देता कैसे मैं उसको
बेटा हूँ मैं उसका, दुश्मनो का सर ले आया था
बहुत कुछ लिखा था उस छोटे से ख़त में
मैंने तुझको, अपना दिल निकाल कर
भारत माँ का बेटा हूँ, जाऊं कहाँ मैं तू ही बता
उस माँ का आँचल सर से उतार कर
ज़िंदा हूँ जब तक मैं दुश्मनो के सर लाऊंगा
आखरी सांस में खड़ा होकर तिरंगे की लाज बचाऊंगा।" "सुनो! क्या वो ख़त मिला तुमको?
जो तेरे सिरहाने तकिये के नीचे छोड़ आया था
सरहद पुकार रही थी मुझको उस रोज़
बिन कुछ कहे तुझसे दूर चला आया था
बहुत जरूरत थी उस वक़्त, माँ को मेरी
अपना वतन साथियों के हवाले छोड़ आया था
क़ातिलों के हाथ छोड़ देता कैसे मैं उसको
बेटा हूँ मैं उसका, दुश्मनो का सर ले आया था
#OpenPoetry "सुनो! क्या वो ख़त मिला तुमको?
जो तेरे सिरहाने तकिये के नीचे छोड़ आया था
सरहद पुकार रही थी मुझको उस रोज़
बिन कुछ कहे तुझसे दूर चला आया था
बहुत जरूरत थी उस वक़्त, माँ को मेरी
अपना वतन साथियों के हवाले छोड़ आया था
क़ातिलों के हाथ छोड़ देता कैसे मैं उसको
बेटा हूँ मैं उसका, दुश्मनो का सर ले आया था
बहुत कुछ लिखा था उस छोटे से ख़त में
मैंने तुझको, अपना दिल निकाल कर
भारत माँ का बेटा हूँ, जाऊं कहाँ मैं तू ही बता
उस माँ का आँचल सर से उतार कर
ज़िंदा हूँ जब तक मैं दुश्मनो के सर लाऊंगा
आखरी सांस में खड़ा होकर तिरंगे की लाज बचाऊंगा।" "सुनो! क्या वो ख़त मिला तुमको?
जो तेरे सिरहाने तकिये के नीचे छोड़ आया था
सरहद पुकार रही थी मुझको उस रोज़
बिन कुछ कहे तुझसे दूर चला आया था
बहुत जरूरत थी उस वक़्त, माँ को मेरी
अपना वतन साथियों के हवाले छोड़ आया था
क़ातिलों के हाथ छोड़ देता कैसे मैं उसको
बेटा हूँ मैं उसका, दुश्मनो का सर ले आया था