#OpenPoetry थे जानौ अर जाणा म्हे ही, थारे म्हारे कितरी बात कुण कुण ने दयां साफ़ सफाई, जीतरा मूंडा उतरी बात ! दो हिवङा री हेत हथाई, जणा जणा री चढ़े जबान सळ नै सळ ही रेवण दयो, अब तो सारे बिखरी बात ! प्रीत रीत पथ मीत देखता और देखता हंस बतलाण लोगा रे बधगी अबखाई , म्हे तो जाणा इतरी बात ! थांरे खातर तन मन वारा, धन संपत सू दे सनमान पण थांरी नासमझी सू ही , बीच बजारा बिकरी बात ! गळी गळी में बेळ कुबेला, आणू जाणू है निरसार समझा हाँ पण समझा कोनी, आ तो म्हारे नितरी बात ! मन में के मजबून देह रे , दरपण में आज्यावे सार ओले छाने बात करा अर चौड़े धाडे दिखरी बात ! थांरी नां सू हुवे उदासी, थांरी हाँ , सू हरख घनो थांरे निरखण री निजरां सू नखरा कर कर निखरी बात ! DALVEER BANA #OpenPoetry rajasthani poetry