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जब अपनी इस ज़िन्दगी की ओर देखता हूँ, ख़ुद को गहरे घन

जब अपनी इस ज़िन्दगी की ओर देखता हूँ,
ख़ुद को गहरे घने अंधकार में पाता हूँ।
वहाँ से बनते देखता हूँ ऊँची इमारतें,
जहाँ बाबा को सर पर ईंट ढोते देखता हूँ।
वहीं कुछ दूर बड़ी लाल इमारत दिखती है,
जहाँ किताबे थामे कुछ बच्चों को देखता हूँ।
दिखने में तो वो सब मुझ जैसे ही लगते हैं,
मैं बस उनके साफ-सुथरे कपड़ो की ओर देखता हूँ।
सामने की ओर  लाला जी का एक छोटा ढाबा है,
जहाँ अक्सर माँ को मैं बर्तन धोते देखता हूँ।
सोचता हूँ क्या मैं भी यही करूँगा जो बाबा करते हैं,
क्योंकि स्कूल जाने का तो में सपना ही देखता हूँ। बारंबार गुज़रना होता है 
अतीत की सुरंग से।

Kismat badalte der nahi lagti aksar baba se suna tha,
Haqiqat me is jumle ko amal me aate dekhta hu.
Mene farishto ko in nanhi aankho se dekha hai,
Jinhe Babu ji ki surat me meri zindagi me aate dekhta hu,
Naye kapde dilakar babu ji ka hath pakad kar lal imarat me dakhil hota hu
जब अपनी इस ज़िन्दगी की ओर देखता हूँ,
ख़ुद को गहरे घने अंधकार में पाता हूँ।
वहाँ से बनते देखता हूँ ऊँची इमारतें,
जहाँ बाबा को सर पर ईंट ढोते देखता हूँ।
वहीं कुछ दूर बड़ी लाल इमारत दिखती है,
जहाँ किताबे थामे कुछ बच्चों को देखता हूँ।
दिखने में तो वो सब मुझ जैसे ही लगते हैं,
मैं बस उनके साफ-सुथरे कपड़ो की ओर देखता हूँ।
सामने की ओर  लाला जी का एक छोटा ढाबा है,
जहाँ अक्सर माँ को मैं बर्तन धोते देखता हूँ।
सोचता हूँ क्या मैं भी यही करूँगा जो बाबा करते हैं,
क्योंकि स्कूल जाने का तो में सपना ही देखता हूँ। बारंबार गुज़रना होता है 
अतीत की सुरंग से।

Kismat badalte der nahi lagti aksar baba se suna tha,
Haqiqat me is jumle ko amal me aate dekhta hu.
Mene farishto ko in nanhi aankho se dekha hai,
Jinhe Babu ji ki surat me meri zindagi me aate dekhta hu,
Naye kapde dilakar babu ji ka hath pakad kar lal imarat me dakhil hota hu
arshansari6017

Arsh Ansari

New Creator