वो कच्चे मकान कमज़ोर दरवाज़ों में रहने वाले कितनी तहज़ीब से रहते हैं,
और ऊंची इमारतों में बसने वालों ने खुदा को भी झुटला दिया।
दो वक्त की रोटी जिन्हें नसीब नहीं उन्होंने मुहब्बत बांट ली,
महलों में रहने वालों ने सोने के बर्तनों में फरेब बांट लिया।
जिनके बदन पर कपड़े बेशक कम थे उन्होंने इज़्ज़त को सब कुछ मान लिया,
दिन के तीन पहर कपड़े बदलने वालों ने खुद को भी नीलाम कर दिया।
मकान में कमरे कम रिश्ते ज़्यादा थे जिनके उन्होंने ख्याल सबका किया,
और महलों के मालिकों ने अपनी दीवारों को नाप लिया। #Poetry#Family#makan