" यूं तड़प के मुहब्बत में ख़ाक हो जाते हैं , रुह की चाहत में जिस्म छली हो जाते हैं , यूं मिलना तेरा कहीं मुमकिन हो जाये तो क्या , इस असर में कुछ यूं खुद को तन्हा हो जाते हैं ." --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " यूं तड़प के मुहब्बत में ख़ाक हो जाते हैं , रुह की चाहत में जिस्म छली हो जाते हैं , यूं मिलना तेरा कहीं मुमकिन हो जाये तो क्या , इस असर में कुछ यूं खुद को तन्हा हो जाते हैं ." --- रबिन्द्र राम #तड़प#मुहब्बत #ख़ाक #रुह #जिस्म #छली #मुमकिन #तन्हा