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" प्रेम विस्तार है और स्वार्थ संकुचन " - स्वामी वि

" प्रेम विस्तार है और स्वार्थ संकुचन "
- स्वामी विवेकानंद 
( अनुशीर्षक में पढ़े )  
©आराधना   प्रेम एक कोमल एहसास , एक सुखद अनुभूति और कभी न सुलझने वाली पहेली । प्रेम के स्वरूप पर मेरा मानना है कि प्रेम का स्वरूप अथाह है इसका वर्णन करना अर्थात प्रेम शब्दो को नीचा दिखाना होगा । एक माँ अपने पुत्र को देखने के लिए सदा आतुर रहती है सदा उसकी कुशल मंगल की कामना करती है ,एक सच्चा प्रेमी अपनी प्रेमिका के बगैर नही रह सकता । प्रेम के स्वरूप और विस्तार के बारे में एक माँ और प्रेमी -प्रेमिका ही बता सकता है वरना प्रेम को किसने देखा है । इंसान की सारी भागदौड़ का प्रेम पर ही आ कर अंत हो जाता है । या ये
" प्रेम विस्तार है और स्वार्थ संकुचन "
- स्वामी विवेकानंद 
( अनुशीर्षक में पढ़े )  
©आराधना   प्रेम एक कोमल एहसास , एक सुखद अनुभूति और कभी न सुलझने वाली पहेली । प्रेम के स्वरूप पर मेरा मानना है कि प्रेम का स्वरूप अथाह है इसका वर्णन करना अर्थात प्रेम शब्दो को नीचा दिखाना होगा । एक माँ अपने पुत्र को देखने के लिए सदा आतुर रहती है सदा उसकी कुशल मंगल की कामना करती है ,एक सच्चा प्रेमी अपनी प्रेमिका के बगैर नही रह सकता । प्रेम के स्वरूप और विस्तार के बारे में एक माँ और प्रेमी -प्रेमिका ही बता सकता है वरना प्रेम को किसने देखा है । इंसान की सारी भागदौड़ का प्रेम पर ही आ कर अंत हो जाता है । या ये