व्यतीत हो गए बिना तुम्हारे जीवन के ग्यारह वर्ष गिनता रहा मैं हर पल हर क्षण जीवन के निष्कर्ष मैं सदेह अब भी पड़ा हूँ जीवन के इस भ्रमजाल में तुम पास हो लेकिन विदेह हो गई मैं कैसे करुँ स्पर्श मन कोमल था भीतर भीतर, बाहर से रहा मैं सख़्त मुश्किल रहा हर पल जीवन का करता रहा संघर्ष रिश्तों कि आपाधापी में निर्णय में जब संदेह रहा ढूँढा तुमको हर कठिनाई में किससे करुँ विमर्श #अम्मा_की_ग्यारहवीं_पुण्यतिथि #पिता_की_भावना #yqbaba #yqdidi #yqquotes #yqhindi