चाहत में आज़ादी ग़र हो मुकम्मल हर इश्क़ है फ़िर। भयमुक्त रहता हर आशिक दूर जाने से फ़िर। ग़र मोहब्बत हो आबरू से तो देते उम्रभर साथ, करते इज़्ज़त एक-दूजे की प्रतिष्ठा पर आँच आने नहीं देते फ़िर। सच्चे प्यार को जिस्मों की चाहत नहीं होती रूह में घर कर जाते है। हक़ हो अपना जीवनसाथी चुनने का हर कसक मीट जाती है फ़िर। घबराते नहीं डटकर करते सामना ग़र साथ दिलबर का मिले, ना टूटते है ख़ुद कभी ना टूटने देते अपने दो परिवारों को फ़िर! ♥️ Challenge-626 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।