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हार कर के चाह अपनी छोड़ने मन जा रहा था, फूल झड़ता है

हार कर के चाह अपनी छोड़ने मन जा रहा था,
फूल झड़ता है ख़िजाँ में फिर से समझाया ज़हन ने।

वक़्त को कुछ वक़्त दे मन, फिर ख़िज़ां आबाद होगी,
गुल खिलेगा बागबाँ में फिर से समझाया ज़हन ने।

चारण गोविन्द #चारण_गोविन्द #CharanGovindG #उम्मीदें #कोशिश #सकारात्मकता #Posetive_Thoughts #govindkesher 

#rays
हार कर के चाह अपनी छोड़ने मन जा रहा था,
फूल झड़ता है ख़िजाँ में फिर से समझाया ज़हन ने।

वक़्त को कुछ वक़्त दे मन, फिर ख़िज़ां आबाद होगी,
गुल खिलेगा बागबाँ में फिर से समझाया ज़हन ने।

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